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दिल्ली HC का आदेश- बच्चा गोद लेना मौलिक अधिकार नहीं

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दिल्ली हाईकोर्ट ने बच्चों को गोद लेने के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं माना है। कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि जिनके पहले से ही दो बच्चे हों, वो सामान्य बच्चा गोद नहीं ले सकते हैं। हालांकि, उन्हें दिव्यांग को गोद लेने का अधिकार है।

कोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान मंगलवार को कहा कि बच्चे को गोद लेने के अधिकार को आर्टिकल 21 के तहत मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। इसके अलावा किसी भी कपल को यह चुनने का अधिकार नहीं है कि किसे गोद लेना है।

दरअसल, कोर्ट में प्रोस्पेक्टिव एडेप्टिव पेरेंट्स (PAPs) यानी भावी दत्तक माता-पिता की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही थी। कई PAPs ने तीसरा बच्चा गोद लेने की मांग की थी, जबकि पहले से उन्हें दो सामान्य बच्चे हैं।जस्टिस स्वामीप्रसाद ने कहा कि गोद लेने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। कई निःसंतान कपल और एक बच्चे वाले माता-पिता सामान्य बच्चे को गोद लेते हैं। ऐसे में विकलांग बच्चे को गोद लेने की संभावना बहुत कम रहती है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए 2022 में गोद लेने के नियमों में बदलाव किया गया है।
दो या दो से ज्यादा बच्चों वाले माता-पिता केवल विकलांग बच्चे ही गोद ले सकते हैं, जब तक कि बच्चा रिश्तेदार या सौतेला बच्चा न हो।अनाथ बच्चों की तीन कैटेगरी होती हैंहमारे देश में बच्चा गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया बेहद लंबी और कठोर है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 के तहत जब एडमिनिस्ट्रेशन या सरकारी एजेंसी को कोई बच्चा मिलता है तो उसे अगले 24 घंटे के अंदर ‘जिला बाल कल्याण समिति’ (CWC) के सामने पेश किया जाता है। इसके बाद बाल कल्याण समिति अनाथ, छोड़े हुए और लावारिस की कैटेगरी तय करके बच्चे के प्रोटेक्शन के ऑर्डर देती है।

किस घर में जाएगा बच्चा, इसे भी जांचा जाता है
ऑर्डर जारी होते ही उस बच्चे को सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) की वेबसाइट पर रजिस्टर्ड किया जाता है, लेकिन इस दौरान वो ‘नॉट फॉर एडॉप्टेबल’ कैटेगरी में रहता है यानी इस बच्चे को तुरंत गोद नहीं लिया जा सकता। बच्चे की मेडिकल रिपोर्ट तैयार की जाती है और वो किस घर में जाएगा, उसकी सारी जानकारी CARA के अधिकारी जुटाते हैं। इसके बाद ही बच्चे को गोद लेने वाले पेरेंट्स को कानूनी तौर पर बच्चा सौंपा जाता है।

गोद लेने के लिए बच्चे का कानूनी तौर पर ‘फ्री’ होना जरूरी
CARA के जरिए गोद दिए जाने वाले बच्चों का ‘जिला बाल कल्याण समिति’ द्वारा लीगल फ्री होना जरूरी है। इसके लिए एक तय प्रक्रिया है। 2 साल तक की उम्र के बच्चों को अधिकतम 2 महीने में और 2 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को 4 माह में लीगली फ्री करार दिया जाता है। इस बीच एजेंसी बच्चे के माता-पिता और परिजनों का पता लगाने का हरसंभव प्रयास करती है। घरवालों का पता नहीं चलने पर बच्चे को लीगली फ्री मानकर CARA की वेबसाइट पर एडॉप्शन के आवेदन के लिए अवेलेएबल किया जाता है।

विदेशी कपल को इंडियंस के बाद मिलता है मौका
भारतीय बच्चे विदेशी कपल को सीधे एडॉप्शन के लिए नहीं दिए जा सकते। CARA पहले भारतीय और NRI कपल को बच्चे को गोद लेने का मौका दिया जाता है। 7 दिन में दो बार मंगलवार और शुक्रवार को ऑनलाइन वेबसाइट के जरिए ये मौके मिलते हैं।

अगर 5 साल से कम उम्र के बच्चे को 60 दिन बाद भी कोई इंडियन एडॉप्ट नहीं करता, यानी 16 बार कोशिश के बाद भी भारतीय दंपती उस बच्चे को गोद नहीं लेता तो विदेशी दंपती को यह अवसर दिया जाता है। बच्चा 5 साल से बड़ा है तो 30 दिनों बाद, मतलब 8 रिजेक्शन और दिव्यांग बच्चे को 15 दिन, मतलब 4 रिजेक्शन के बाद विदेशी दंपती को यह अवसर मिलता है।सिंगल पेरेंट के लिए गोद लेने की हैं अलग तरह की शर्तें
अगर कोई अकेली महिला किसी बच्चे को एडॉप्ट करना चाहती है तो वह लड़का या लड़की में से किसी को भी एडॉप्ट कर सकती है, लेकिन पुरुष सिर्फ लड़के को एडॉप्ट कर सकता है। गोद लेने वाले दंपती का आर्थिक रूप से मजबूत होना जरूरी है। हालांकि, पुरुष और गोद लेने वाले बच्चे में 21 साल से ज्यादा का अंतर है तो लड़की को भी एडॉप्ट कर सकता है।3 कैटेगरी के बच्चों को नहीं लेना चाहते गोद}
UNICEF के मुताबिक, 2020 में 2,27,518 बच्चे चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस में थे। इनमें से 1,45,788 बच्चों को उनके नजदीकी रिश्तेदारों को सौंप दिया गया। ऐसा तब हुआ जब महामारी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने यह दिशा-निर्देश दिए। लेकिन अभी भी लाखों की संख्या में बच्चे चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस में जीवन बिता रहे हैं।

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