सरसों तेल के मूल्य में वृद्धि के मद्देनजर इस वर्ष कृषकों का रुझान सरसों खेती की ओर बढ़ा है। तेल की बढ़ती कीमत आम लोगों का जहां बजट बिगाड़ डाला है। वहीं सरसों की कीमत देख किसानों ने इस बार सरसों खेती का रकवा बढ़ाते हुए आमदनी का नया स्रोत ढूंढ निकला है। पहले नगदी फसल के रूप में केला मक्का व मखाना को प्राथमिकता देते थे। परंतु वर्तमान में अब दर्जनों किसान सरसों की खेती को प्राथमिकता देने लगे हैं। यही कारण है कि इस वर्ष प्रखंड क्षेत्र के बहियारों में सरसों के पीले पीले फूल लहलाते नजर आ रहे हैं। किसानों ने बताया कि मक्का केला के वनिस्पत सरसों की खेती में लागत कम पड़ता है और अगर सरसों का भाव इसी प्रकार बरकरार रहा तो बेहतर लाभ होने से इनकार नहीं किया जा सकता और सबसे अहम बात यह है कि सरसों की फसल जहां चार माह में ही तैयार होकर घर चला आता है। वहीं तिलहन की खेती से खेतों में उर्वरा शक्ति में बेतहाशा वृद्धि भी होती है और जिन खेतों में तिलहन की खेती होती है और उसे खेत में अगर अगला फसल भी बेहतर होता है। जबकि मक्का खेती के वनिस्पत मेहनत भी कम लगता है और पूंजी भी कम लगता है। इस लिहाज से सरसों की खेती ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल है। गौरतलब हो कि खुले बाजारों में फिलवक्त 140 रुपए से 160 रुपए लीटर के दर से सरसों तेल की बिक्री हो रहा है परंतु अपने खेत के सरसों से तेल निकालने के बाद निश्चित रूप से सस्ता पड़ेगा और शुद्धता की दृष्टिकोण से भी बेहतर साबित होगा। बहरहाल जहां किसान बेहतर लाभ की आशा लिए सरसों की खेती की और रुख किया है। वहीं कृषि विभाग भी सरसों की खेती को किसानों के हित में लाभकारी बता रहे हैं।