नीतीश कुमार आगे क्या करेंगे और लालू प्रसाद का क्या स्टैंड होगा, सभी की नजर इसी पर टिकी है। बिहार की राजनीति दो धाकड़ समाजवादियों की लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर आकर खड़ी हो गई है। नीतीश के बारे में यह बात स्थापित है कि वे एक पद तभी छोड़ते हैं, जब उनके हाथ में दूसरा पद रहता है।
लालू से अलग होने के बाद नीतीश के पास दो ऑप्शन हैं। वह भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं। दूसरा विकल्प यह है कि वह विधानसभा भंग करके चुनाव में जाएं। हालांकि, इसकी संभावना कम है।
वहीं, लालू यादव भी इतनी जल्दी हथियार डाल देंगे, यह मुमकिन नहीं दिखता। आरजेडी सरकार बनाने की हर संभव कोशिश करेगी। इसकी वजह है- लालू की पार्टी बिहार में सबसे बड़ा दल है, दूसरा विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी आरजेडी से ही हैं।
हालांकि, सरकार बनाने के लिए आरजेडी, कांग्रेस, लेफ्ट और AIMIM के विधायक मिलाकर 116 हो रहे हैं। बहुमत का आंकड़ा 122 है। इस स्थिति में उन्हें 6 विधायक और चाहिए। इसलिए लालू हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (हम) के संरक्षक जीतन राम मांझी के बेटे को डिप्टी सीएम के पद का ऑफर दे रहे हैं।बिहार विधानसभा की 243 सीटों में राजद 79 विधायकों के संख्या बल के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। इसके बाद दूसरे नंबर पर भाजपा है। इसके 78 विधायक हैं।
जेडीयू के पास 45 और कांग्रेस के पास 19 विधायक हैं। लेफ्ट के पास 16 विधायक हैं। एक विधायक सुमित कुमार सिंह निर्दलीय हैं और AIMIM के पास एक विधायक अख्तरुल ईमान हैं।
हम पार्टी के पास चार विधायक हैं। विपक्ष में भाजपा, हम और एआईएमआईएम पार्टी है। जादुई आंकड़ा 122 का है। नीतीश कुमार अगर लालू प्रसाद के साथ छोड़ कर भाजपा के साथ जाते है तो उनके (जेडीयू) पास 45, बीजेपी के 78, हम पार्टी के 4 और एक निर्दलीय होगा। यानी127 विधायक होंगे। दूसरी तरफ आरजेडी के पास चुनौती है कि वह कैसे 122 के आंकड़े पर पहुंचती है।आरजेडी के 79, कांग्रेस के 19, लेफ्ट के 16, एक निर्दलीय, AIMIM का एक और हम पार्टी के 4 विधायक एक साथ हुए तो आरजेडी सरकार बनाने के लिए 120 विधायकों की संख्या जुटा सकती है।
अब यह चुनौती है कि आरजेडी अपनी सरकार कैसे बना सकती है! क्या आरजेडी के लिए सभी रास्ते बंद हो गए हैं। नीतीश कुमार के पास कौन-कौन से रास्ते हैं! राजनीति को संभावनाओं का खेल माना जाता है।
चर्चा इस बात की है कि जब तक भाजपा के बड़े नेता क्लीयरेंस नहीं देते, नीतीश बीजेपी में जाने की बात कॉन्फिडेंस के साथ नहीं कहेंगे। नीतीश को किसी न किसी अलायंस का साथ चाहिए। वे चाहें तो कांग्रेस, आरजेडी और लेफ्ट वाले गठबंधन के साथ ही रहें या फिर बीजेपी, हम वाले गठबंधन में।
जेडीयू की ताकत ऐसी नहीं है कि वह अकेले चुनाव में जाने की हिम्मत दिखाए। नीतीश कुमार के सामने एक बड़ा ऑप्शन यह हो सकता है कि वह जैसे भी हो, गठबंधन के साथ बने रहें।
सवाल उठता है कि फिर इतना सब क्यों हो रहा है? इसका जवाब यह हो सकता है कि नीतीश कुमार बारगेनिंग बढ़ाना चाहते हैं। जानें, आगे का रास्ता और क्या हो सकता है-संतोष कुमार कहते हैं कि दूसरी तरफ लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव इस बार नीतीश कुमार को घेरने का चक्रव्यूह रच रहे हैं। इस चक्रव्यूह में वे जीतन राम मांझी, ललन सिंह, विजेन्द्र यादव, ज्ञानेन्द्र सिंह ज्ञानू सहित बीजेपी और जेडीयू के कई विधायकों को अपना मोहरा बना सकते हैं।
इन लोगों को मंत्री, उपमुख्यमंत्री, लोकसभा चुनाव का टिकट, विधान पार्षद या राज्यसभा का प्रलोभन दे सकते हैं। बीजेपी और जेडीयू के कई विधायक लालू प्रसाद के संपर्क में हैं।