Home Blog एक्टर राज किरण 27 साल से गुमशुदा:फ्लॉप हुए तो मानसिक संतुलन बिगड़ा

एक्टर राज किरण 27 साल से गुमशुदा:फ्लॉप हुए तो मानसिक संतुलन बिगड़ा

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कहते हैं फिल्मी दुनिया में दूर से जितनी चकाचौंध से भरी दिखती है, नजदीक जाने पर उतनी ही पेचीदा होती चली जाती है। कई लोग यहां नाम, शोहरत स्टारडम तो हासिल कर लेते हैं, लेकिन जब उन्हीं स्टार्स का नाकामी से सामना होता है तो उसे बर्दाश्त करना काफी मुश्किल होता है। ऐसा ही कुछ हुआ 80 के दशक के मशहूर एक्टर राज किरण के साथ। कई लोग उन्हें नाम से नहीं पहचानते, लेकिन तस्वीर देखने पर मालूम पड़ता है कि इस शख्स को किसी न किसी फिल्म में तो जरूर देखा है।तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो…., झुकी झुकी सी नजर…जैसे बेहतरीन गाने राज किरण पर ही फिल्माए गए हैं। 1975 की फिल्म कागज की नाव से फिल्मों में आए राज किरण ने अपने हुनर का ऐसा कारनामा दिखाया कि 1980 में उनकी एक साथ 8 फिल्में रिलीज हुईं, जिनमें से ज्यादातर हिट रहीं। कर्ज, अर्थ, घर एक मंदिर जैसी करीब 100 फिल्मों में नजर आए राज किरण को हिंदी सिनेमा के हैंडसम और नम्र स्वभाव के दरियादिल एक्टर के रूप में जाना जाता था, लेकिन उनकी निजी जिंदगी अपने आप में एक मुकम्मल थ्रिलर फिल्म की तरह रही, जिसके क्लाइमैक्स का इंतजार आज भी फैंस को है।

अचानक इंडस्ट्री से गायब हुए राज किरण के कभी अटलांटा के पागलखाने में होने की खबर आई, तो कभी अमेरिका में टैक्सी चलाने की, लेकिन असल में वो कहां, किस हाल में हैं, जिंदा हैं भी या नहीं, ये बात कोई नहीं जानता। ऋषि कपूर और दीप्ति नवल जैसे उनके कुछ दोस्तों ने भी उन्हें ढूंढने की कोशिशें कीं, लेकिन परिवार ने उन्हें पूरे मामले से दूर रहने की हिदायत दे दी।19 जून 1949, राज किरण महतानी का जन्म बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था। सिंधी परिवार में जन्मे राज के 2 भाई गोविंद महतानी और अजीत महतानी हैं। उन्हें बचपन से ही फिल्मों में आने का शौक था। कॉलेज के दिनों में राज किरण को 26 साल की उम्र में बी.आर. इशारा की फिल्म कागज की नाव (1975) मिल गई। इस फिल्म में उनकी हीरोइन सारिका (कमल हासन की पूर्व पत्नी और श्रुति हासन की मां) थीं। ये उनकी भी डेब्यू फिल्म थी।

उस जमाने की पॉपुलर मैगजीन संडे को दिए एक इंटरव्यू में राज किरण ने बताया था कि बी.आर. इशारा करीब एक हफ्ते तक उनके साइलेंट सीन शूट करते रहे। वो चाहते थे कि राज किरण कैमरा फ्रेंडली होने के बाद ही डायलॉग बोलें।1975 में रिलीज हुई राज किरण की पहली फिल्म कागज की नाव में जब वो पहली बार स्क्रीन पर नजर आए, तो समुद्र किनारे उन्हें रेत पर बने सवालों के निशानों के बीच बैठा देखा गया। वहीं उनका पहला डायलॉग था, सवाल एक ही है, बस बड़ा हो रहा है, बहुत बड़ा।

किसे पता था उनकी पहली स्क्रीन अपियरेंस में दिखाए गए सवालों के निशान और उनका पहला डायलॉग ताउम्र उनके साथ बंधा रहेगा। पहली फिल्म से ही राज किरण का चेहरा दर्शकों के जहन में बस गया।पहली फिल्म कागज की नाव की बदौलत उन्हें अगली फिल्म मिली किस्सा कुर्सी का। 1977 में सोशल पॉलिटिकल सटायर पर बनी फिल्म काफी विवादों में रही। फिल्म में कांग्रेस नेताओं इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी का जमकर मजाक बनाया गया था, जिससे सत्ता में चल रही कांग्रेस पार्टी ने फिल्म पर बैन लगा दिया था। देश में इमरजेंसी लगने के बाद इस फिल्म की सारी प्रिंट और मास्टर प्रिंट को सेंसर बोर्ड के दफ्तर में जब्त कर लिया गया था।

कुछ समय बाद फिल्म की प्रिंट चोरी कर ली गई, जिसे गुड़गांव (अब गुरुग्राम) स्थित मारुति फैक्टरी ले जाकर जला दिया गया। फिल्म रील जलाए जाने पर जब फिल्ममेकर कोर्ट पहुंचे, तो जांच में फिल्म रील जलाने के लिए संजय गांधी और इन्फॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्ट मिनिस्टर वी.सी. शुक्ला को दोषी पाया गया। 11 महीने तक चले केस के बाद 27 फरवरी 1979 को संजय गांधी और वी.सी. शुक्ला को 2 साल एक महीने की जेल की सजा सुनाई गई। हालांकि, बाद में फैसला पलट दिया गया।

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