60-70 लोगों की भीड़ कॉन्स्टेबल लक्ष्मी को बुरी तरह पीट रही थी। वे उसका सिर कुचलना चाहते थे। मैंने लक्ष्मी का पैर पकड़ा और उसे खींच लिया। उसके सिर से खून निकल रहा था। मैं लक्ष्मी को गली-गली से निकालकर, बचाता हुआ घर पहुंचा। लक्ष्मी मेरे घर 7 घंटे रुकी। मेरी पत्नी ने उनके कपड़े बदलवाए। खाना खिलाया। उनके घुटने में चोट आई थी। हमने उसकी पट्टी की। फिर पुलिस को खबर दी। रात में पुलिसवाले आए और लक्ष्मी को ले गए।’
ये आबिद सिद्दीकी हैं। बनभूलपुरा की नई बस्ती में रहते हैं। 8 फरवरी, 2024 की शाम हल्द्वानी में जिस जगह दंगा भड़का, वो आबिद के घर से सिर्फ 200 मीटर दूर है। इस हिंसा में 7 लोगों की मौत हुई है। इसी दौरान आबिद ने दंगे में फंसी लेडी कॉन्स्टेबल लक्ष्मी को भीड़ से बचाया था।अगले दिन पुलिस बस्ती में सर्च ऑपरेशन चलाने बस्ती में आई तो आबिद के घर भी पहुंची। आबिद की पत्नी ने बताया कि हमने तो पुलिसवालों की जान बचाई थी। तब पुलिस लौट गई। इसके बाद आबिद ने अपने घर के गेट पर एक पोस्टर लगा लिया, जिस पर लिखा है कि ये वही घर है, जिन्होंने कॉन्स्टेबल को बचाया था।
अब भी हिंसा वाले इलाके में हर गली में पुलिस तैनात है। पुलिस PRO दिनेशचंद्र जोशी ने बताया कि हिंसा के दिन कुछ मुस्लिम परिवारों ने 6 पुलिसवालों को घायल देखकर उन्हें अपने घर में शरण दी थी। इस वजह से उनकी जान बचाई जा सकी
अगर कीचड़ से बाहर नहीं निकालता, तो भीड़ लक्ष्मी का सिर कुचल देती
हम आबिद सिद्दीकी के घर पहुंचे तो गेट पर एक कागज चिपका दिखा। इस पर लिखा है, ‘ये घर वो है, जिन्होंने कॉन्स्टेबल की जान बचाई है। कांस्टेबल का नाम है लक्ष्मी। उनका फोन नंबर है…30 साल के आबिद सिद्दीकी हल्द्वानी में कपड़ों का कारोबार करते हैं। वे 2 साल से नई बस्ती में रह रहे हैं। परिवार में दो बच्चे और पत्नी हैं। आबिद कांग्रेस युवा मोर्चा अध्यक्ष भी रह चुके हैं।आबिद बताते हैं, ‘8 फरवरी को शाम के 7 बज रहे थे। मैं अपनी 5 साल की बेटी को ट्यूशन से घर लेकर आ रहा था। उसकी कोचिंग मस्जिद के पास है। तब तक हिंसा शुरू नहीं हुई थी। हालांकि, लोगों के बीच मारपीट हो चुकी थी।’
‘वहां दो पुरुष कॉन्स्टेबल और एक लेडी कॉन्स्टेबल लक्ष्मी घायल हालत में पड़े थे। कुछ लोग उन्हें मार रहे थे। लोग कह रहे थे कि लक्ष्मी ने किसी महिला को लात मारी है। इसलिए भीड़ भड़क गई और लक्ष्मी को मारने लगी। वे लोग उसका सिर कुचलना चाहते थे।’
‘मैंने बेटी को मस्जिद के पास दोस्त के घर छोड़ दिया। दोनों पुरुष कॉन्स्टेबल को भी दोस्त के घर बैठा दिया और अकेला ही लक्ष्मी को बचाने चला गया।’
छोटे बालों की वजह से भीड़ समझ नहीं पाई कि लक्ष्मी महिला है
आबिद आगे बताते हैं, ‘जिस जगह मदरसा टूटा है, लक्ष्मी उसके सामने कीचड़ में पड़ी थीं। उनके बाल कटे हुए हैं, इसलिए लोगों को लगा कि वे मर्द हैं। लक्ष्मी चिल्ला भी रही थीं कि मुझे छोड़ दो भाई लोगों। मैं लेडी हूं।’
‘मैंने लक्ष्मी का पैर पकड़ा और भीड़ से खींच लिया। इस दौरान मुझे भी हाथ और पेट में चोट आई। मैं बेटी और लक्ष्मी को गली-गली से निकालकर बचाता हुआ घर पहुंचा। इस बीच मुझे भी डंडे मारे गए, लेकिन जैसे-तैसे मैं घर तक पहुंच गया।’भीड़ आबिद के घर पहुंची, तो मोहल्ले के लोग बाहर निकल आए
आबिद बताते हैं, ‘मैं राजनीति में हूं। इस वजह से हल्द्वानी में सब लोग मुझे जानते हैं। मैं इस इलाके का जाना-पहचाना चेहरा हूं। डेढ़ घंटे बाद भीड़ मेरे घर पहुंच गई। वे गली के बाहर खड़े थे, लेकिन मेरी बस्ती के लोगों ने मेरा बहुत साथ दिया।’
कुछ आदमियों ने घर से बाहर निकलकर उन लोगों को मेरे घर पहुंचने से पहले ही रोक लिया। उन्होंने पुलिस को बुलाने की धमकी दी। भीड़ वहां से चली गई, उन्हें पता चल गया था कि मैं लक्ष्मी को बचाकर घर लाया हूं। मैं बहुत डरा हुआ था। मेरे दो छोटे बच्चे हैं। इसलिए मैंने CCTV कैमरे से पुरानी वीडियो डिलीट करना शुरू किया और लक्ष्मी को छिपा दिया।’